Blogदेश

Chandra Grahan:चंद्र ग्रहण कब और कैसे लगता है, सूर्य और पृथ्वी होती हैं इसकी वजह, जानें पूरा विज्ञान

When and how does lunar eclipse occur, Sun and Earth are the reason behind it, know the complete science

चंद्र ग्रहण एक ऐसा खगोलीय घटना है जिसे अक्सर लोग देखने के लिए उत्सुक रहते हैं। यह घटना तब होती है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आते हैं, और पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है, जिससे सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता।यह उपच्छाया चंद्र ग्रहण 18 सितंबर की सुबह 6 बजकर 12 मिनट से शुरू होगा और यह 4 घंटे 4 मिनट तक चलेगा। इसकी समाप्ति सुबह 10 बजकर 17 मिनट पर होगी। यह लगभग 4 घंटे लंबी खगोलीय घटना होगी, जिसमें चंद्रमा पर एक हल्की सी छाया देखी जा सकेगी। यह प्रक्रिया बेहद रोचक है और इसके पीछे का विज्ञान भी उतना ही दिलचस्प है। आइए समझते हैं कि चंद्र ग्रहण कैसे और कब लगता है, और इसका पूरा वैज्ञानिक आधार क्या है।

चंद्र ग्रहण कैसे लगता है?

 

चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। यह घटना केवल पूर्णिमा के दिन ही संभव होती है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा सीध में होते हैं। सामान्य तौर पर चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता रहता है और सूर्य की रोशनी से प्रकाशित होता है। लेकिन जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है, जिससे  चंद्र ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती है।

ग्रहण के प्रकार

चंद्र ग्रहण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:

1. पूर्ण चंद्र ग्रहण: इस स्थिति में पूरा चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आ जाता है और चंद्रमा का पूरा हिस्सा अंधकारमय हो जाता है। इस दौरान चंद्रमा का रंग लाल हो सकता है, जिसे ब्लड मून के नाम से जाना जाता है।

2. आंशिक चंद्र ग्रहण: इसमें चंद्रमा का केवल एक हिस्सा पृथ्वी की छाया से ढक जाता है। बाकी चंद्रमा पर सूर्य की रोशनी पड़ती रहती है।

3. उपछाया चंद्र ग्रहण: इसमें चंद्रमा पृथ्वी की मुख्य छाया (umbra) में नहीं आता, बल्कि पृथ्वी की हल्की छाया (penumbra) में प्रवेश करता है। इस स्थिति में चंद्रमा पर धुंधली छाया देखी जाती है और ग्रहण का प्रभाव बहुत हल्का होता है।

चंद्र ग्रहण क्यों लगता है?

 

चंद्र ग्रहण का कारण पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूर्णन और चंद्रमा की कक्षा में गति है। जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, तो उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है। यह छाया दो हिस्सों में बंटी होती है: *उम्ब्रा (umbra), जो गहरी छाया होती है, और **पेनुम्ब्रा (penumbra)*, जो हल्की छाया होती है। जब चंद्रमा उम्ब्रा में प्रवेश करता है, तो पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है, जबकि पेनुम्ब्रा में प्रवेश से उपछाया चंद्र ग्रहण होता है।

चंद्र ग्रहण कब लगता है?

 

चंद्र ग्रहण केवल पूर्णिमा की रात को ही संभव है, क्योंकि इस समय चंद्रमा और सूर्य पृथ्वी के विपरीत दिशा में होते हैं। हालांकि, हर पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण नहीं होता, क्योंकि चंद्रमा की कक्षा थोड़ी झुकी हुई होती है। इसलिए, चंद्रमा कई बार पृथ्वी की छाया से बचकर निकल जाता है। लेकिन जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य पूरी तरह से एक ही रेखा में आ जाते हैं, तो चंद्र ग्रहण की घटना घटित होती है।

ब्लड मून: लाल क्यों दिखता है चंद्रमा?

 

पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा लाल दिखाई देता है, जिसे *ब्लड मून* कहा जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है, तब सूर्य की किरणें पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुजरती हैं। इस दौरान नीली और हरी किरणें बिखर जाती हैं, जबकि लाल रंग की किरणें चंद्रमा पर पड़ती हैं। इसी कारण चंद्रमा का रंग रक्तिम यानी लाल दिखाई देता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

 

चंद्र ग्रहण एक प्राकृतिक और नियमित खगोलीय घटना है। इसके पीछे कोई रहस्यमय या अलौकिक कारण नहीं होते, जैसा कि कई संस्कृतियों और प्राचीन मान्यताओं में माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह एक साधारण प्रक्रिया है, जो पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के परस्पर संबंधों के कारण होती है।

निष्कर्ष

 

चंद्र ग्रहण एक बेहद दिलचस्प खगोलीय घटना है, जो हमें ब्रह्मांड के जटिल और समृद्ध विज्ञान की एक झलक दिखाती है। इसके पीछे का विज्ञान सरल है, लेकिन इसे देखना एक अद्भुत अनुभव होता है। हर चंद्र ग्रहण एक नया अवसर होता है, जिससे हम ब्रह्मांड की शक्ति और सुंदरता को महसूस कर सकते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button